◆ आदिवासी क्रांतिकारी शहीद वीर बिरजू नायक का शहादत दिवस 2 मई को मनाया जाता है
उदयपुर संवाददाता, (प्रभुलाल गरासिया)। सन् 1857 की क्रांति के दौर के वीर क्रांतिकारी, एक महान योद्धा, सतपुड़ा के सुदूर पहाड़ियों में रहने वाले निमाड़ के आदिवासी वीर योद्धा रहे बिरजू नायक। जिनकी कहानी से बहुत ही कम लोग वाकिफ है, अंग्रेज शासनकाल में कई क्रांतिकारी योद्धाओं ने अपना बलिदान दिया। उनमें से कई वीर ऐसे भी है जिनका जिक्र इतिहास में एक लाइन से ज्यादा नही किया गया है। ऐसे ही आदिवासी वीर योद्धा रहे बिरजू नायक, जिनका शहीदी दिवस 2 मई को मनाया जाता है।
मध्य्प्रदेश के बड़वानी जिले की राजपुर तहसील के नगर पलसूद के निकट ग्राम मटली एवं सावरदा के बीच स्थित एक पहाड़ी पर स्तिथ प्रसिद्ध "बांडी हवेली" है। जो वीर बिरजू नायक का कर्मघर है, जो आज भी मौजूद है, हालांकि अब वह अब खण्डहर में तब्दील हो चुका है। इसको संरक्षित करने की आवश्यकता है। स्थानीय समाजनों से प्राप्त जानकारी के अनुसार ऐसी मान्यता है, कि वीर बिरजू नायक इसी बांडी हवेली से अपने साथियों के साथ अंग्रेजो के विरुद्ध अपनी योजना बना कर उन्हें अंजाम देते थे।
वहीं पलसूद के नजदीक ग्राम उपला में इनका समाधि स्थल है, जहां वर्तमान में भी क्षेत्र के समाजजन पहुँचकर वीर योद्धा को श्रधांजलि सुमन अर्पित करते है, वहीं समस्त मूलनिवासी संघटनों द्वारा प्रतिवर्ष 2 मई को वीर बिरजू नायक का शहीद दिवस भी मनाया जाता है। हमारे पूर्वजो एवं वरिष्ठ महानुभावो से प्राप्त जानकारी अनुसार बिरजू नायक हमेशा गरीब एवं किसान के हितों के लिए लड़ते थे।
वीर योद्धा भीमा नायक, ख्वाजा नायक और टांट्या मामा भील के साथ कई विद्रोह में सहभागिता की। उन्होंने अंग्रेजो से कई लड़ाई लड़ कर उन्हें धूल चटा दी थी, कहा जाता है कि जब भी गांव में अंग्रेज आते थे, अंग्रेजो को गांव से मारकर भगाने पर मजबूर कर देते थे। उलेखनीय है कि स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के पश्चिम निमाड़ के आगमन पर राजपूर क्षेत्र के गुप्त रास्तों से नर्मदा नदी पार करवाकर मंजिल तक पंहुचाने में भीमा नायक, ख्वाजा नायक एवं बिरजू नायक तथा साथियो का अहम योगदान था, इसी योगदान के बदले उन्हें "वीर की उपाधि" दी गयी थी। जिससे पता चलता है कि सिंधु घाटी क्षेत्र में वीर के नाम से चर्चित थे। आज भी उनके नाम के आगे लोग वीर लिखना नही भूलते है । निवाली(सिंधु घाटी) राजपुर उनका गढ़ रहा है। ग्राम मटली में स्थित झरने (कुंडी) पर नहाने जाया करते थे, उन्हें धोखे के तहत रणनीति बनाकर मारने के लिए अंग्रेजो ने करीबी साथी का सहारा लिया, क्योकि बिरजू नायक को मारना आसान नही था, अंग्रेजो ने उन्हें मारने के लिए कई असफल प्रयास किये।
वे युद्ध कला में निपुण थे, बिरजू नायक प्रतिदिन की तरह एक बार झरने (कुंडी) पर नहाने पँहुचे थे, तभी अंग्रेजो द्वारा भेजे गए किसी परिचित ने उनका सर धड़ सर से अलग कर दिया। ऐसा बताया जाता हैकि सर धड़ से अलग होने के बावजूद वे उपला स्थित समाधि तक दौड़ते हुए आ गए थे व उक्त स्थल पर प्राण त्यागे थे।
आदिवासी समाज एवं विभिन्न संघटनो के कार्यकर्ता वर्तमान में भी उनकी गाथा का गायन करते है।
कहा जाता है कि वीर बिरजू नायक अपने साथियों को सूचना देने हेतु वाद्य यंत्र का उपयोग करते थे, जिस स्थान से सूचनाओं का आदान प्रदान करते थे उस स्थान को अब ढोला बेड़ी के नाम से जाना जाता है जो वर्तमान में ग्राम मटली में स्थित है।
-साभार, सोशल डेस्क।