भारत में उपजा बौध्द धम्म विश्व को शांति का पाठ सिखा रहा

त्रिगुण पावन वैशाख पौर्णिमा के रूप मे मनाई जाती हैं बुध्द जयंति


◆ बौध्द धम्म आदर्श जीवन संहिता हैं।


भारत की भूमि पर प्रस्फुटित बौध्द धम्म की शाखाये आज संपूर्ण विश्व में लहलहा कर विश्व को शांति, करूणा ओर मैत्री की छांव में निर्वाण प्राप्त करने की प्रेरणा दे रही हैं। भारतभूमि से उपजा बौध्द धम्म विश्व को तथागत बुध्द द्वारा दिया गया अनुपम उपहार हैं। तथागत बुध्द के विचार आज ढाई हजार वर्षों बाद भी प्रासंगिक व स्विकार्य हैं। बुध्द अपने अनुयायीयों को कहते हैं कि किसी भी बात को केवल इसलिये मत मानों की उसे मैने कहा हैं या वो सदियों से परंपरागत रूप से चली आ रही हैं। बल्कि उसे अपने विवेक से यथार्थ की कसौटी पर कसो और जब जानों तब मानों, न जानो तो न मानों। बुध्द के इस तर्कशिल वैग्यानिक दृष्टिकोन ने ही बौध्द धम्म के अस्तित्व को आज हजारो वर्षों बाद भी कायम रखा हैं।



 7 मई को पूरे विश्व में बुध्द जयंति का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता हैं, विश्व कोरोना जैसी महामारी से जुझ रहा हैं हर आदमी दुखी ओर परेशान हैं। तथागत बुध्द दुखों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। तो आईये जानते हैं भारत भूमि के मूल धर्म बौध्द धम्म को उसके संस्थापक तथागत बुध्द ओर उनकी शिक्षाओं को।


आरंभ-  बुध्द धम्म के आरंभ को जानने के लिये तथागत बुध्द के प्रांरभिक सांसारिक जीवन को जानना जरूरी हैं,उनका जन्म 563 ईस्वी पूर्व के बीच शाक्य वंश की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वन में वैशाख पौर्णिमा के दिन हुआ था,जो वर्तमान में नेपाल में है।लुम्बिनी वन नेपाल के तराई क्षेत्र में कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास स्थित था। कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी को अपने पिहर देवदह जाते हुए रास्ते में प्रसव पीड़ा हुई और वहीं उन्होंने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का नाम सिद्धार्थ रखा गया।चूकि गौतम उनका गोत्र था अत: वे सिध्दार्थ गौतम भी कहलाए। क्षत्रिय राजा शुद्धोधन उनके पिता थे। सिद्धार्थ गौतम की माता का उनके जन्म के सात दिन बाद ही निधन हो गया था। उनका पालन पोषण उनकी मौसी और शुद्दोधन की दूसरी रानी महाप्रजापती (गौतमी)ने किया। राजशाही वैभव में जन्मे सिध्दार्थ का स्वभाव बचपन से अन्य राजकुमारों से भिन्न था उन्हे एकांत पसंद था वे शिकार कर हिंसा नही करना चाहते थे। उनके मन में सभी के प्रति करूणा का भाव था।


डॉ बी आर आम्बेड़कर ने अपनी पुस्तक जो भारत मे बौध्दों द्वारा सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला ग्रंथ हैं बुध्द ओर उनका धम्म में लिखा हैं कि सिध्दार्थ गौतम के नामकरन संस्कार में आये महान ऋषियो ने बालक सिध्दार्थ के बारे मे यह भविष्यवाणी की थी कि यदि यह बालक सांसारिक जीवन में रहेगा तो महान चक्रवति सम्राट होगा ओर वैराग्य धारन करेगा तो महान तपस्वी होकर संसार का मर्ग प्रशस्त करेगा। राजकुमार सिध्दार्थ गौतम के पिता राजा शुध्दोधन राजकुमार सिध्दार्थ के स्वभाव व महात्माओं की इस भविष्यवाणी से व्याकुल रहते थे। एक दिन राज्य भ्रमण पर निकले सिध्दार्थ ने रोग से पिड़ित रोगी व्यक्ति, वृध्दावस्था की तकलीफो से जुझते वृध्द व मृत्यू शैय्या पर लेटी मृत देह को देख लिया जिससे वे विचलित हो गये व इन दुखों के कारनों को जानने के प्रयासों मे जुटे रहे। वही सिध्दार्थ वैराग्य धारण न करे इसलिये उनके पिता राजा शुध्दोधन ने कई जतन किये। सिध्दार्थ के लिये तीनों ऋतुओं के हिसाब से महल बनवाये व संपूर्ण राजसी वैभव की भौतिक सुख सुविधाओं से उनके मन को सांसारिक जीवन में बांधे रखने के प्रयत्न किये। राजकुमारी यशोधरा से उनका विवाह संपन्न करवाया जिससे उन्हे एक पुत्र राहुल हुआ। यह सब होने के बावजूद सिध्दार्थ के मन मे कुछ ओर ही था। ओर एक  दिन यशोधरा से स्विकृति लेकर वे इन दुखो के निवारण का सत्य मार्ग खोजने निकल पडे।


सिध्दार्थ गौतम को बुध्दत्व की प्राप्ति -


अपने सारथी छन्न को लेकर जंगल की ओर निकले सिध्दार्थ गौतम ने कास्य वस्त्र धारन कर सारथी छन्न को पुन: राजमहल लोटने को कहा ओर वे ग्यानीजनों की खोज मे जंगल की ओर निकल पढ़े वर्षों तक महान तपस्वीयों,हटयोगियों की संगत व उनकी द्वारा दिये ग्यान से वे संतुष्ट नही हुये ओर स्वयं सत्य की खोज मे निकल पड़े वे अन्न पानि त्याग कर एक वटवृक्ष के निचे साधना करने बैठ गये। कठोर तप से उनका शरीर सुख गया था। राजनृतकी आम्रपाली के गीत के बोल "वीणा का तार इतना न खिचों की टुट जाये,ओर इतना ढिला भी न छोड़े की मधूर स्वर न निकले।" ने तपस्यारत बुध्द को कठोर तप कर स्वयं के शारिरिक को कष्ट से समाप्त नही करने के लिये प्रेरित किया। ओर अन्न त्याग चूके सिध्दार्थ गौतम ने गणिका आम्रपाली के हाथो खिर ग्रहण कर अन्न पानि त्यागने का संकल्प छोड़ दिया। खिर ग्रहण करने के बाद उनमे नव चेतना का संचार हुआ ओर वे उठकर खड़े हुये। ऐसी मान्यता हैं की उन्होने खिर के पात्र को यह कहते हुये निकट की निरंजना नदि (जो वर्तमान में बिहार के गया में हैं।) मों फेका की यदि मुझे ग्यान की प्राप्ति हुई होगी तो यह पात्र नदी के प्रवाह के विपरित दिशा में बहेगा। ओर पात्र नदि के विपरित दिशा मे बहता हैं।ओर सिध्दार्थ गौतम को बुध्दत्व की प्राप्ति हुई। संयोगवश इस दिन भी वैशाख पौर्णिमा का ही दिन था।


महापरिनिर्वाण - पालि सिद्धांत के महापरिनिर्वाण सुत्त के अनुसार ८० वर्ष की आयु में बुद्ध ने घोषणा की कि वे जल्द ही परिनिर्वाण के लिए रवाना होंगे। बुद्ध ने अपना आखिरी भोजन, जिसे उन्होंने कुन्डा नामक एक लोहार से एक भेंट के रूप में प्राप्त किया था, ग्रहण लिया जिसके कारण वे गंभीर रूप से बीमार पड़ गये। बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को निर्देश दिया कि वह कुन्डा को समझाए कि उसने कोई गलती नहीं की है। उन्होने कहा कि यह भोजन अतुल्य है।अपने अंतिम समय में भी बुध्द प्रसन्न थे, उनके प्रिय शिष्य आनंद ने तथागत बुध्द से पूछा कि आपके बाद भिक्खु संघ का मार्ग कौन प्रशस्त करेगा तब बुध्द ने कहा की धम्म अर्थात मेरे द्वारा दिखाया मार्ग ही आपका मार्ग दर्शन करेगा।


बौध्द धम्म के प्रमुख सिध्दांत व शिक्षाये -


पंचशील सिध्दांत बौध्द धम्म की प्रमुख शिक्षाओं मे हैं, हिंसा नही करना,चोरी न करना,व्याभिचार न करना,झुठ नही बौलन व किसी प्रकार का नशा न करना। पंचशिल के यह आदर्श जीवन सिध्दांत है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बौध्द धम्म आदर्श जीवन जिने की कला हैं।
बौद्ध धम्म में 'अनित्यता' अर्थात सब कुछ परिवर्तनशील होना एक प्रमुख सिद्धांत है, बुद्ध ने ही प्रथम बात खोजा कि सब कुछ अनित्य है और प्रत्येक वस्तु कुछ और होने की प्रक्रिया मे है… ... बुद्ध ने खोजा कि सब कुछ अनित्य है और  नशवरता का यह बोध हमे अपनी अपने जीवन मे भी दिखता है ।त्रीशरण,चार आर्य सत्य, आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, अव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन, बुद्ध कथाएं, अनात्मवाद और निर्वाण दाना पारामिता जैसे कई सिध्दांत हैं जो सुखी जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं।


बौध्द धम्म के प्रमुख ग्रंथ -


तथागत बुध्द के समय प्राचिन पालि भाषा चलन में थी अर्थात बुध्द की समस्त शिक्षाये व उपदेश पाली भाषा में हैं, तथागत बुध्द की शिक्षाये,उपदेश तथा उनके द्वारा कही गई गाथाओं को उनके शिष्यों द्वारा कंठस्थ किया गया था। मान्यता हैं कि बुध्द की 84000 गाथाये उनके प्रमुख शिष्य आनंद को कंठस्थ थी। तथागत बुध्द के उपदेशों व शिक्षाओं को उनके शिष्यों द्वारा शिलालेखों पर उत्किर्ण कि गई थी।त्रिपिटक बुध्द धम्म का सर्वश्रेष्ट ग्रंथ हैं।विनय पिटक,सुत्त पिटक व अभिधम्म पिटक इसके तीन भाग हैंउक्त पिटकों के अंतर्गत उप-ग्रंथों की विशाल श्रृंखलाएं है। सुत्तपिटक के पांच भाग में से एक खुद्दक निकाय की पंद्रह रचनाओं में से एक है धम्मपद। धम्मपद ज्यादा प्रचलित है।


भारत मेंं बौध्द धम्म का पतन-


भारत में बौद्ध धर्म ईसा पूर्व 6वी शताब्धी से 8वी शताब्धी तक भारत में बौद्ध धर्म रहा। लेकिन देशी-विदेशी धर्मों के खून खराबे, हिंसक शक्ती से जुंजते हुए बौद्ध धर्म भारत में 12वी शताब्धी तक रहा और हिमालयीन प्रदशों के उपरांत अन्य राज्यों में नहीं के बराबर हो गया। कुछ विद्वानों के कथनानुसार भारतवर्ष से बौद्ध धर्म के लोप हो जाने का कारण 'ब्रह्मणों का विरोध' ही था। बौद्ध धर्म के पुर्व ब्राम्हण वैदिक धर्म का पालन करते थे अत्ः बौद्ध धर्म का आगमन एक प्रकार से ब्राम्हण धर्म के विरुध्द एक् क्रान्ति थी।


◆ भारत मे बौध्द धम्म का पुनउर्दय -


मौर्यकाल में चुकि सम्राट अशोक ने बौध्द धर्म को अपना राजधर्म बना लिया था अतः इसके आचरनानुसार वैदिक बलिप्रथा पर रोक लगा दी थी जिससे बौद्ध धर्म का काफी विस्तार हुआ। 20वी शताब्धी के मध्य सन 1956 में आधुनिक भारत के निर्माता और बौद्ध विद्वान डॉ॰ भीमराव आंबेडकर द्वारा अपने लाखों अनुयायीओं के साथ बौद्ध धर्म अपनाकर बौद्ध धर्म को भारत पुनर्जीवीत किया। भीमराव आंबेडकर के प्रभाव से एक सर्वेक्षण के अनुसार सन 1959 तक देश के करीब 2 करोड़ लोगों ने बौद्ध धर्म को ग्रहण किया था।


बुध्द के चार आर्य सत्य -


तथागत बुध्द ने जीवन में सुखी रहने के लिये चार आर्य सत्यों की खोज की जो दुख से मुक्ति प्रदान करते हैं जो इस प्रकार हैं।
(1) दुःख : संसार में दुःख है,(2) समुदय : दुःख के कारण हैं,(3) निरोध : दुःख के निवारण हैं,(4) मार्ग : निवारण के लिये अष्टांगिक मार्ग हैं।


प्राणी जन्म भर विभिन्न दु:खों की शृंखला में पड़ा रहता है, यह दु:ख आर्यसत्य है। संसार के विषयों के प्रति जो तृष्णा है वही समुदय आर्यसत्य है। जो प्राणी तृष्णा के साथ मरता है, वह उसकी प्रेरणा से फिर भी जन्म ग्रहण करता है। इसलिए तृष्णा की समुदय आर्यसत्य कहते हैं। तृष्णा का अशेष प्रहाण कर देना निरोध आर्यसत्य है। तृष्णा के न रहने से न तो संसार की वस्तुओं के कारण कोई दु:ख होता है और न मरणोंपरांत उसका पुनर्जन्म होता है। बुझ गए प्रदीप की तरह उसका निर्वाण हो जाता है। और, इस निरोध की प्राप्ति का मार्ग आर्यसत्य - आष्टांगिक मार्ग है। इसके आठ अंग हैं-सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वचन, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि। इस आर्यमार्ग को सिद्ध कर वह मुक्त हो जाता है।तथागत बुध्द की यही शिक्षाये मानव को आदर्श जीवन जी कर निर्वाण प्राप्त करने के लिये प्रेरित करती हैं। समता बंधुत्व भाईचारा व समानता बुध्द धम्म का आधार हैं। वैष़शाख पौर्णिमा के दिन तथागत बुध्द का जन्म हुआ था 35 वर्ष की उम्र में इसी दिन उन्हे ग्यान की प्राप्ति हुई थी ओर 80 वर्ष की उम्र में इसी वैशाख पौर्णिमा को उनका महापरिनिर्वाण हुआ था। खुशी, हर्ष व शौक एक ही दिन पूर्ण होते हैं। इसलिये बुध्द जयंति वैशाख पौर्णिमा को त्रिगुण पावनी वैशाख पौर्णिमा भी कहा जाता हैं। *इस करोना महामारी से उपजे दुखों व परेशानियों पर विजय हासिल करे, आपके जीवन में सभी दुखो का अंत हो आप सुखी सफल निरोगी व दिर्घायु हो ऐसी मंगल भावनाओं के साथ सभी पाठको को बुध्द जयंति की अनेको शुभकामनाये।


लेखक-मुकुल लक्ष्मण वाघ (एमफिल), प्रदेश अध्यक्ष-भारतीय बौध्द महासभा मप्र। सभार- विकिपडिया, सत्याग्रह, बुध्द व उनका धम्म।