◆ आज देश में अर्थव्यव्स्था, डूबते बैंक, बेरोजगारी, गरीबी, असमानता, नफरतें, मोब्लिंचिंग , हत्याएं , बलात्कार सभी में इजाफा हो रहा हैं
पूर्व राष्ट्पति स्वर्गीय डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी ने एक सपना देखा था उनकी कल्पना थी, कि 21 सदी में भारत विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश होगा।
प्रोद्योगिकी के मामले में पहले पायदान पर होगा। ये सपना उन्होंने देश की युवा पीढ़ी के भरोसे किया था। उनके द्वारा लिखी हुई किताब " विजन 2020" ए विजन फॉर द मिलेनियम में उल्लेखित किया है, लेकिन आज के परिदृश्य में अर्तव्यवस्था तो दूर लोकतंत्र के मायने ही बदल गए हैं।
राजनीति के तौर तरीके, देशभक्ति की परिभाषाएं बदल गई है लोकतंत्र की मजबूती के लिए पक्ष विपक्ष दोनों का होना अती आवश्यक होता है। कमजोर विपक्ष अगर होगा तो सरकार के काम काज एवं जनहित के मुद्दों को संसद में तर्क वितर्क के लिए कोई जगह नहीं रहेगी।
यह और भी खतरनाक हो जाता हैं जब लोकतंत्र का चोथा स्तंभ मीडिया जगत भी सरकार के गुणगान करने में लग जाता है। ना सिर्फ गुणगान करता है बल्कि एक पार्टी प्रवक्ता की तरह अपनी बात मनवाने का कार्य भी करता है।
मीडिया का धर्म होता है कि जैसे वह सरकार के अच्छे काम की तारीफ करता है, वैसे ही वह सरकार के खिलाफ नाकामी के लिए भी इतना ही मुखर होकर बोले लेकिन ऐसा बहुत कम देखने को मिल रहा है।
इस प्रोधोगिकी के युग में खबरों के लिए बहुत सारे प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो गए हैं अफवाहें भी उसी तरह उसी गति से लोगो में शेयर हो रही हैं। इन खबरों के दो किनारे हो गए हैं ऐसे दो किनारे जो निकट भविष्य में एक दूसरे से वैचारिक स्तर पर कभी मैल नहीं खाएंगे। इसी का परिणाम है कि आज देश में अर्थव्यव्स्था, डूबते बैंक, बेरोजगारी, गरीबी, असमानता, नफरतें, मोब्लिंचिंग , हत्याएं , बलात्कार सभी में इजाफा हो रहा हैं। असल मुद्दों पर चर्चाएं होती ही नहीं है। जहां सरकार का हित हो बस बात उसी पर जाकर रुक जाती है। चाहे वो दंगल हो, हल्लाबोल हो, पूछता है भारत हो या सभी पार्टियों की आईटी सेल द्वारा फेसबुक या ट्विटर पे की गई पोस्ट हो।
हर जगह बस हिन्दू मुसलमान, मंदिर मस्जिद, भारत पाकिस्तान के मुद्दे चलाए जाते हैं, ये सब भावनाओं से जुड़े विषय है। लोगों की फीलिंग्स से सरकार एक तरह का खेल, खेल रही है। और आप ओर हम इन्हें लाइक करके, शेयर करके, तारीफ करके सरकार को ये एहसास दिलाते है कि हम आपके साथ है। हमें बेरोजगारी से, भूकमरी से, गरीबी से कोई लेना देना नहीं है। यह एक नया विभाजन है लोगो की मानसिकता का।
समय आगे बड़ रहा है और संवेदनाएं गिरती जा रही है लेकिन हा कुछ अभी भी अपने अंतरात्मा से ओर विवेक से सोचते है और इन सब बातो पे प्रकाश डालते हैं वो लिखते है बेबाक। वो बोलते है निडर होकर और उन्हें कुछ लोग, देशद्रोही बता कर परेशान करना शुरू कर देते हैं। उन्हें बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं फेसबुक, ट्विटर, मीडिया हर जगह घसीट लाते है अपशब्दों से, निजी हमलों से। सरकार में बैठे लोग अजर ओर अमर नहीं है।
सरकारें आती जाती रहती है ऐसे मे हर नागरिक का नैतिक कर्तव्य है कि वो अगर कुछ गलत हो रहा है तो बोले। गलत दिख रहा है तो रोके। बोल ना सके तो लिखें। समाज के वंचित लोगों के लिए, अपने अधिकारों के लिए के लिए, संविधान के लिए, इंसानियत के लिए, खुद के लिए परिस्थिति अनुसार निर्णय ले।
ख़ामोश रहकर आज खुद के लिए थोड़ी सी जगह तो मिल जाएगी सत्ता के गलियारों में लेकिन एक समय आने पर घुटन महसूस होगी।
सत्ता के गलत निर्णयों को भी सही घोषित करना वैसा ही है जैसे पूत्रमोह में धृतराष्ट्र को दुर्योधन के सभी कार्य उचित लगते थे। अधर्म ऐसे ही बढ़ता है जब प्रजा मूकदर्शक बने देखती रहती है या फिर चाटुकारिता में लीन रहती हैं और जिम्मेदार नेता अपने ढंग से मनमानी करते हुवे सुख भोगते रहते है सरकार के निर्णयों को बिना विचारे समर्थन करना ही देशभक्ति नहीं होती है ओर ना ही सरकार के निर्णयों का विरोध कर देने मात्र से कोई देशद्रोही हो जाता हैं जाने अंजाने इस चाटुकारिता से लोकतंत्र कमजोर ही होगा। समय के साथ लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए लेकिन अंधभक्ति और चाटुकारिता में पीस रहा है लोकतंत्र।
◆ राजू.....