खरगोन (राजेेेश पंंवार)। कोरोना महामारी के संकटकाल ने मध्यप्रदेश में किसानों को एक ऐसी सौगात दे दी है, सामान्य दिनों में जिसका वे लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। कोरोना संकट के दौर में किसानों को आर्थिक परेशानियों से बचाने के लिए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने एक ही झटके में मंडी अधिनियम में संशोधन करके किसानों को एक तरह से ग्लोबल मार्केटिंग से जोड़ने का करिश्मा कर दिखाया। आढ़त का काम कर रहे व्यापारियों को अगर लायसेंस राज से मुक्ति मिली है तो किसानों के लिए भी यह एक तरह से आर्थिक रूप से अपने को मजबूत बनाने का मौका कहा जा सकता है। कोरोना के इस संकट काल में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। देश में भी खेती और किसान आर्थिक विमर्श के केन्द्र में हैं। केन्द्र में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कृषि जिंसों की मार्केटिंग के लिए राज्य सरकारों को एक माडल एक्ट सौंप रखा है। इसके पीछे सरकार की मंशा है कि पूरे देश में कृषि जिंसों के लिए बाजार की एक जैसी व्यवस्था हो जाए ताकि किसानों को अपना उत्पादन बेचने के बेहतर विकल्प मिल सकें। राज्य की पिछली सरकार ने इसे ठंडे बस्ते में डाल रखा था। श्री चौहान को जब चौथी बार सरकार चलाने का मौका मिला है तो आपदा के इस दौर में उन्होंने किसानों के हित में मंडी एक्ट में संशोधन के साथ एक बड़ा किसान हितेषी कदम उठा लिया। मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य है जिसने किसानों के हित में मण्डी एक्ट में संशोधन किया गया है।
इस संशोधन का सीधा फायदा किसान को होगा। अब उसे अपने उत्पादन का ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सकता है। इसके लिए उसे अब मंडियों के चक्कर काटने की जरूरत भी नहीं होगी। मंडियों में किसानों को लंबे इंतजार के साथ अपनी उपज की गुणवत्ता को लेकर कई परेशानियों से दो-चार होना पड़ता था। मंडी अधिनियम में संशोधन के बाद अब किसान घर बैठ कर भी अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेच सकेगा। जाहिर है कोरोना महामारी के इस दौर में सुरक्षा के जो मापदंड अपनाए जा रहे हैं, उसमें किसान की परेशानी कई गुना बढ़ना तय था। सरकार ने इस अधिनियम में संशोधन से पहले भी किसानों के हित में कुछ कदम उठाए थे लेकिन अब मंडी अधिनियम में जरूरी बदलावों के बाद किसान के लिए अपनी फसल बेचना पहले से ज्यादा आसान और फायदे का सौदा साबित होगा। मंडी में जाकर समर्थन मूल्य पर उपज बेचने का विकल्प किसान के पास जस का तस रहेगा। नई वैकल्पिक व्यवस्था बन जाने के बाद कृषि जिंसों के व्यापार में एक नई प्रतिस्पर्धा खड़ी होगी, जिसका फायदा किसानों को मिलेगा। लायसेंसी व्यापारी अब किसान के घर या खेत पर जाकर ही उसकी फसल खरीद सकेगा। एक ही लायसेंस से व्यापारी प्रदेश में कहीं भी जाकर यह खरीददारी कर सकेगा। इससे बिचौलियों की व्यवस्था खत्म होगी। मसलन भोपाल के एक व्यापारी को यदि पिपरिया जाकर अरहर दाल खरीदना होती थी तो उसे वहां क लायसेंसी व्यापारी के माध्यम से खरीददारी करना होती थी। अब यह बाध्यता खत्म होगी तो इसका सीधा फायदा किसान के अलावा उपभोक्ता को भी मिलेगा।
सरकार ने ई-टेंडरिंग का भी इंतजाम किया है। इसके तहत पूरे देश की मंडियों के दाम किसान को मिल जाएंगे। वो देश की किसी भी मंडी में, जहां उसे दाम ज्यादा मिल रहे हों, अपनी फसल का सौदा कर सकेगा। फल और सब्जियों को पहले ही प्रदेश में मंडी अधिनियम से छूट हासिल है। इसके अलावा मंडी शुल्क भी केवल एक बार की खरीदी बिक्री पर देना होता है। उल्लेखनीय है कि कृषि उपज मंडियां भी किसानों को शोषण से मुक्ति दिलाने की दिशा में उठाया गया एक अच्छा कदम था। पर अब समय के हिसाब से जरूरतें बदल रही हैं। इसके अलावा मंडियों के राजनीतिकरण के कारण मंडियां किसानों के लिए एक कुचक्र की तरह हो गई हैं, जिसमें किसान दबा, पीटा और लूटा नजर आ रहा था। वैसे भी जब दुनिया भर में मुक्त बाजार की अवधारणा फल फूल रही है तो किसानों को मंडियों के दायरे में बांधने का कोई मतलब नहीं रह जाता। लिहाजा, मंडी अधिनियम में संशोधन, किसान को मुक्त व्यापार से जोड़ने की दिशा में सरकार का एक बड़ा कदम कहा जा सकता है। व्यवस्था में इस बदलाव का फायदा उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को समान रूप से मिलने के आसार हैं। उदाहरण के लिए एक किसान अपने खेत पर आम दस या बीस रूपए किलो में एक व्यापारी को बेचता है लेकिन उपभोक्ता तक जाते-जाते इस आम की कीमत अस्सी या सौ रूपए किलो हो जाती है। नई व्यवस्था में किसानों से मंडी के बाहर उसके गांव से ही फूड प्रोसेसर, निर्यातक, होलसेल विक्रेता या फिर आखिरी उपयोगकर्ता सीधे किसान की उपज खरीद सकेगा। इसका एक मतलब यह होगा कि किसान अब अपने उत्पादन का व्यापारी भी खुद ही हो जाएगा।
मंडी अधिनियम में बदलाव के बाद अब गोदामों, साइलो कोल्ड स्टोरेज आदि को भी प्राइवेट मंडी माना जाएगा। मंडी समितियों का इन प्रायवेट मंडियों के काम में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं रहेगा। इसका एक फायदा यह भी होगा कि किसान के सामने भंडारण की जो समस्या हर फसल के सीजन में सामने खड़ी होती है, उसका समाधान एक तरह की गुंजाईश बनेंगी। अभी भंडारण की समस्या के कारण किसान अपनी उपज को लेकर हर समय एक तरह से आशंकाओं से ही घिरा रहता है। अधिनियम में संशोधन के बाद अब कम से कम ऐसा तो नहीं ही होगा कि उपज ज्यादा हो जाए , दाम गिर जाएं और किसान को उसे खेतों मे ही नष्ट करना पड़े। कोरोना आपदा के इस दौर में भी ऐसी खबरें हमें मिल ही रही हैं कि किसान की फल-सब्जियां खेतों में ही सड़ रही है। इसके अलावा भी सामान्य दिनों में इस तरह की खबरें मिलती हैं कि किसान को अपनी फसल मंडी में ले जाना महंगा पड़ रहा है इसलिए उसने फसल को नष्ट करना ही बेहतर समझा। किसान की यह पीड़ा अब कम होने के आसार हैं। अब किसान से फूड प्रोसेसर सीधे उसकी फसल आसानी से खरीद सकेंगे। ऐसे में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को भी प्रदेश में बढ़ावा मिलता दिखेगा।
भोपाल में ही सूरज नगर में रहने वाले किसान गौरेलाल कहते हैं कि सरकार के इन फैसलों में यह साफ झलकता है कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह को न सिर्फ किसानों की चिंता है बल्कि एक किसान परिवार से होने के कारण किसानों की इन तकलीफों को वे बेहतर तरीके से जानते हैं। किसानों के हित में उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल में भी बहुत किया है। जीरो ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने के अलावा ब्याज पर सब्सिडी का मामला हो या फिर किसानों के हित में भावांतर योजना जैसे कदम। मुझे लगता है कि एक किसान पुत्र होने के कारण किसानों की वास्तविक तकलीफों को श्री चौहान बेहतर तरीके से समझते हैं। सरकार के इस कदम ने किसानों के लिए आर्थिक मंदी के इस दौर में एक नया रास्ता खोल दिया है। किसान के लिए आज बाजार बड़ा और व्यापक होता दिख रहा है।