प्रदेश में शासकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इलाज के नाम पर केवल खाना पूर्ति, मरीजों को इंदौर भेजा जाता है


धार (लोकसंवेदना दस्तक)। प्रदेश सरकार जहां स्वस्थ्य और शिक्षा पर ज्यादा काम कर रही है। वही आदिवासी अंचल मे इसका ढांचा एक कागज के शेर की तरह नजर आता है। धार जिले के गंधवानी विधानसभा क्षेत्र के बाग विकसखंड में आदिवासी समाज के गरीब परिवार का बसा बसाया घर स्वस्थ्य विभाग कि लापरवाही के कारण उजाड गया। पीछे रह गये विलाप करते हुए बुढ़े मां-बाप ने अपनी बुढ़ी आंखों ने अपने घर से एक के बाद एक तीन लाशों को नमन आंखो से विदा करने के लिए रह गये। विकसखंड बाग से मात्र 5 किमी की दूरी पर एक आदिवासी समाज का परिवार ग्राम देवधा मे खुशहाली की जिदंगी जी रहा था। लेकिन इस परिवार पर काल की नजर लगते देर नही हुई। खुशी को मातम बनते देर नही लगीं। महेश के पिता इमानसिंह अपनी दर्द भरी आंखो से अपना दर्द बयान करते हुए बताते है कि उनकी गर्भवती बहू रेखा पति महेश को बाग के स्वास्थ्य विभाग में मोटरसाइकिल से लेकर आया था। लेकिन यहाँ पर सुविधाओं अभाव के कारण तहसील कुक्षी से बडवानी और बड़वानी से इन्दौर अस्पताल मे भेज दिया गया। इस चक्कर मे रेखा पति महेश मौत की जंग मे हार गई। कुछ दिनों बाद मां के दूध के अभाव में नवजात शिशु की दम तोड़ दिया। दो मौतों को देकर महेश पिता इमानसिंह ने आत्महत्या करके अपने संघर्ष भरी जिंदगी को अलविदा कह दिया और पीछे छोड़  चला गया। विलाप करते हुए दो बेबस गरीब बुढ़े मां-बाप। ऐसे न जाने कितने गरीब, बेबस आदिवासी समाज के मां-बाप होंगे। जो स्वस्थ्य विभाग कि लापरवाही के कारण मौत के घाट उतर गये होंगे। इसकी जिम्मेदारी कौन लेंगा। स्वस्थ्य विभाग या इस प्रदेश की सरकार जिसने जीवन बने से पहले उसके बेटे, बहू और नवजात शिशु की मौत आगोश मे सुला दिया। विकसखंड बाग के सामुदायिक स्वास्थ्य विभाग की हालत देखकर राहत इन्दौरी का एक लतीफा याद आता है, बुलाती है मगर जाने का नही।