कृष्ण आडम्बरी भक्ति को स्वीकार नहीं करते- आचार्य आशुतोष शास्त्री

देवास। घर को मंदिर और मन को वृंदावन बनाओ। मद से मन को दूर कर शरीर को मथूरा बनाओगे, तभी ठाकूरजी के दर्शन के भाव पैदा होगे। स्वयं आनंद में रहते है और ओरों को आनंद देते है, ऐसे ही नंद के यहाँ परमानंद आते है। श्रीकृष्ण आडम्बरी भक्ति को स्वीकार नहीं करते। प्रभु से पहले माता-पिता की सेवा ही सच्ची भक्ति है। यह आध्यात्मिक विचार श्री राधाकृष्ण महिला मण्डल समिति द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा में भागवताचार्य आशुतोष शास्त्री (शुक्ल) जी ने व्यक्त किए।  कथा प्रसंग में बालकृष्ण को मारने के लिये कंस द्वारा अनेक विफल प्रयास किये गये। पुतना राक्षसी ने अपने स्तन में विष भर कर कृष्ण को मारने का प्रयास चतुर्थदशी के दिन ही क्यों किया? क्योंकि पुतना ने चौदह ठिकानों पर वास किया। पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार यह चौदह स्थान वासना और अविद्या के है, जहाँ पुतना वास करती है। पुतना को प्रभु ने माँ का दर्जा दिया है, क्योंकि स्वयं प्रभु ने उसके स्तन का पान किया था, इसीलिये उसे स्वर्ग में स्थान दिया। श्रीकृष्ण के दर्शन हेतु भगवान शिव का आगमन, कृ ष्ण और बलराम के नाम का नामकरण संस्कार का वर्णन किया। माखन चोर की लीला गोपियों का कृष्ण के प्रति अपार प्रेम का वर्णन करते हुए बताया कि ब्रजवासी सारा माखन कंस को भेज देते थे। गाँव का माखन गाँववालों के लिये होना चाहिए। इसीलिये कृ ष्ण ने ग्वालबालों की मण्डली बनाकर माखनचोर मटकी फोड़ जैसी लीला की। ईश्वर की हमेशा अपेक्षा रहती है कि जीव अपने समान हो। जीव ईश्वर से प्रेम करें। ईश्वर उसे अपने जैसा बनाना चाहता है। भगवान की लीलाओं में मिट्टी का खाना, माता यशोदा को मुँह में ब्रह्माण्ड दिखाना। गोपालकृ ष्ण बनकर गायों को चराना, चीरहरण, कालिया नाग दमन जैसी लीलाओं के साथ-साथ ब्रज में इन्द्र की पूजा बंद करवाकर गोवर्धन की पूजा का प्रारंभ करवाना आदि का विस्तार से वर्णन किया गया। कथा में छप्पन भोग गोवर्धन की पूजा और ग्वालबालों के साथ कृष्ण की लीलाओं की सुंदर झाँकियाँ प्रस्तुत की गई। गोपाल पहलवान, मनीष ठाकुर, बंशीधर, दिनेश आदि ने आचार्यश्री का सम्मान किया।