देवास। पत्नी को पति कि सेवा एवं पति को नारी का सम्मान किया जाना चाहिए। ग्रहस्थ जीवन का मुख्य उद्देश्य है शास्त्र कहते है पति-पत्नि को एक दूसरे की उन्नति का सोचना चाहिए। हमें रिश्तों की कीमत समझना चाहिए। पति-पत्नि यदि तनमन अथवा बुद्वि से कमजोर है तो एक दूसरे का सहयोग कर कमी को दूर करना चाहिए। यह विचार यह आध्यात्मिक विचार श्री राधाकृष्ण महिला मण्डल समिति द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा में भागवताचार्य आशुतोष शास्त्री (शुक्ल) जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहे। भागवत वक्ता ने कई मार्मिक प्रंसगों के माध्यम से मानव कल्याण के रास्ते बताए। आपने कहा कि हम विवाह हेतु अच्छे पति व अच्छी पत्नि की मंशा रखते है, परंतु विवाह के बाद यदि आपस में बातों को लेकर विवाद हो तो ईश्वर को दोष मढ़ते है। परंतु कभी यह नही सोचते कि हमारे पुण्यों के हिसाब से हमें सुख व दुख प्राप्त होते है। हमने क्या पुण्य किया यह नही सोचते। आचार्य श्री ने कहा कि संयम वह मशाल है जो जीवन के कोने-कोने की मंगलमय कर देती है। संयम वह पतवार है जो जिंदगी की नाव को भवसागर के पार पहुंचा देती है। संयम वह तपस्या है जिससे गुजरकर व्यक्ति कांच से कंचन बन जाता हैं। संयम वह कवच है जो संयम जीवन की महान संपदा है। संयम मोक्ष का प्रवेश द्वार है। कथा में कंस वध, दोपद्री चिरहरण का वर्णन किया गया।
रूकमणी विवाह प्रसंग का सुंदर वर्णन करते हुए कहा कि रूकमणी ने 5 वर्ष की आयु में ही भगवान श्री कृष्ण को अपना पति मान लिया था। रूकमणी को कृष्ण से विवाह करने में सबसे बड़ी बाधा था रूकमणी का भाई रूखमी । इस विरोध के कारण रूखमणी ने भगवान श्री कृष्ण को पांती लिखी थी,रूकमणी की पांती को पढ़कर ही श्रीकृष्ण ने उनका हरण किया था। श्री कृष्ण ने कहा कि जो करा वो मत करो। जो मनुष्य गीता के प्रसंगों पर चलता है उसका जीवन सार्थक हो जाता है एवं श्रीकृष्ण उसे अपने हृदय में स्थान देते है। विवाह में श्री कृष्ण ने गोपीयों के साथ नृत्य किया। मंगल गीत गाये गए। इस अवसर पर राजेन्द्र सिंगी, बहादुरसिंह, राजेन्द्रसिंह, पिंटू, राहुल ने ने सांफा बांधकर तथा राधाकृष्ण महिला मण्डल समिति द्वारा पुष्पमाला पहनाकर आचार्यश्री का स्वागत किया गया।